पहाड़ी इलाकों के बीच बसा एक छोटा-सा कस्बा था (Heart Touching Story)— रामनगर। यह कस्बा अपनी सुंदरता और सादगी के लिए जाना जाता था। पहाड़ों से गिरती झरनों की आवाज़, मंदिर की सुबह की घंटियाँ और खेतों में गूंजती लोकधुनें इस जगह को किसी चित्र की तरह जीवंत बनाती थीं। इन्हीं गलियों में एक गरीब युवक रहता था — अर्जुन। उम्र उसकी मुश्किल से चौबीस-पच्चीस साल रही होगी, मगर आँखों में अनुभव की गहराई थी। चेहरा सांवला लेकिन तेजस्वी था। वह दिन-भर सेठ हरिराम की किराने की दुकान में काम करता, झाड़ू लगाता, बोरे उठाता और ग्राहकों को सामान तौलकर देता। बदले में उसे महीने भर का थोड़ा-सा वेतन और खाने के लिए दो वक्त की रोटी मिल जाती।(Heart Touching Story)
अर्जुन का जीवन बड़ा सीधा था। न कोई लालच, न कोई शिकायत। मगर दिल के किसी कोने में एक दर्द हमेशा चुभता था — “काश, मेरे मां-बाप ज़िंदा होते तो शायद आज मैं भी किसी अच्छे घर का बेटा कहलाता।” लेकिन किस्मत से कौन लड़ पाया है? वो अकेला था, इसलिए वक्त उसका सबसे बड़ा साथी बन गया था।
एक दिन की बात है, सूरज डूबने को था। आसमान में लालिमा बिखरी हुई थी और हवा में शाम की ठंडक घुल चुकी थी। अर्जुन दुकान से लौट रहा था। रास्ते में खेतों के किनारे पुराने बरगद के पेड़ के नीचे उसने देखा — एक बूढ़ा साधु बैठा था। सफेद दाढ़ी, झुर्रियों से भरा चेहरा और आँखों में अद्भुत शांति थी। उसके पास तीन बड़ी-बड़ी गठरियाँ रखी थीं। हर गठरी कपड़े से मजबूती से बंधी हुई थी, जैसे उनमें कोई बहुमूल्य चीज़ हो।
अर्जुन पास पहुँचा तो साधु ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, क्या तुम मेरी थोड़ी मदद करोगे? यह गठरियाँ बहुत भारी हैं। मैं अकेला इन्हें लेकर घाट तक नहीं जा पा रहा।”
अर्जुन ने बिना सोचे कहा, “ज़रूर बाबा, बताइए, कहाँ ले जाना है?”
बूढ़े साधु ने कहा, “बस सामने पहाड़ी के उस पार एक छोटा-सा आश्रम है। अगर तुम मेरी एक गठरी वहाँ पहुँचा दो, तो मैं तुम्हें तीन सोने के सिक्के दूँगा।”
अर्जुन ने मुस्कुरा कर कहा, “बाबा, मैं आपकी मदद यूँ ही कर दूँगा। बदले में कुछ नहीं चाहिए।”
बाबा ने संतोष भरी नज़र से उसे देखा और बोले, “धन्य हो बेटा, ईमानदार लोग अब बहुत कम रह गए हैं।”
अर्जुन ने झट से एक गठरी उठाई। वह वाकई भारी थी। बाबा के साथ कदम मिलाकर वह चलने लगा। रास्ता ऊबड़-खाबड़ था। दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। कुछ देर बाद अर्जुन ने पूछा, “बाबा, इसमें क्या है जो इतना भारी है?”
साधु ने मुस्कुराकर कहा, “इसमें ताँबे के सिक्के हैं, बेटा।”
अर्जुन ने मन ही मन सोचा, “शायद यह कोई साधु नहीं, कोई व्यापारी हैं।” लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। चलते-चलते दोनों एक नदी के किनारे पहुँचे। शाम घिर चुकी थी, और अंधेरा बढ़ने लगा था। नदी उथली थी, मगर पानी का बहाव तेज़ था।
बाबा ने कहा, “बेटा, मेरे पास अब दो गठरियाँ और हैं। अगर तुम एक और उठा लो तो मैं तुम्हें तीन और सोने के सिक्के दूँगा।”
अर्जुन ने कहा, “आपको देने की ज़रूरत नहीं बाबा, मैं मदद के लिए हूँ, सौदे के लिए नहीं।”
बाबा मुस्कुराए, “तुम्हारा दिल साफ़ है बेटा, भगवान तुम्हें सुख दे।”
अर्जुन ने दूसरी गठरी भी उठा ली। अब दोनों कंधों पर भारी बोझ था। चलते-चलते अर्जुन के मन में एक प्रश्न उभर आया — “एक गठरी में ताँबा था, तो दूसरी में क्या होगा?”
बाबा ने खुद ही जवाब दे दिया, “इसमें चाँदी के सिक्के हैं।”
अब अर्जुन के भीतर एक हल्की-सी उत्सुकता जागी। “ताँबा, फिर चाँदी… तो तीसरी में क्या होगा?” वह सोच में डूब गया।
नदी पार करने के बाद रास्ता पहाड़ी हो गया। चढ़ाई कठिन थी। बाबा धीरे-धीरे चल रहे थे, और अर्जुन उनके आगे-आगे। कुछ देर बाद बाबा ठिठके और बोले,
“बेटा, अब मुझसे ऊपर चढ़ना मुश्किल है। अगर तुम यह तीसरी गठरी भी उठा लोगे, तो मैं तुम्हें तीन और सोने के सिक्के दूँगा। लेकिन ध्यान रहे, इसे गिराना मत — इसमें सबसे कीमती चीज़ है।”
अर्जुन ने पूछा, “बाबा, इसमें क्या है?”
बाबा ने उत्तर दिया, “इसमें सोने की मुद्राएँ हैं।”
यह सुनकर अर्जुन के कदम जैसे रुक गए। “सोने की मुद्राएँ?” उसने मन ही मन कहा। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने तीसरी गठरी भी उठा ली, और अब तीनों का भार उसके कंधों पर था। चलते-चलते उसके मन में विचारों का जाल बनने लगा।(Heart Touching Story)
“इन गठरियों में ताँबा, चाँदी और सोना है। तो फिर यह साधु इतना गरीब क्यों घूम रहा है? कहीं यह कोई चालाक व्यापारी तो नहीं? अगर मैं इन गठरियों को रख लूँ, तो क्या गलत होगा? आखिर मैंने इन्हें उठाया है, मेहनत मेरी लगी है।”
बाबा अब पीछे-पीछे धीरे-धीरे आ रहे थे। अर्जुन आगे था, पर उसके मन में अब एक तूफ़ान उठ चुका था। हर कदम के साथ विचार भारी होते जा रहे थे। “अगर मैं यह सोना रख लूँ, तो गरीबी से मुक्ति मिल जाएगी। मैं अपना घर बना सकूँगा, दुकान खोल सकूँगा, किसी गरीब की मदद भी कर सकूँगा। आखिर गलत क्या है?”
धीरे-धीरे यह विचार लालच में बदल गया। जब पहाड़ी का शिखर आया, तो अर्जुन ने पीछे मुड़कर देखा — बाबा बहुत पीछे रह गए थे। मौका देखकर उसने तीनों गठरियाँ उठाईं और नीचे की ओर भाग पड़ा। उसकी साँसें तेज़ थीं, दिल धड़क रहा था, लेकिन मन में एक अजीब-सी खुशी थी।
“अब मैं भी अमीर बन जाऊँगा,” वह खुद से कहता हुआ तेज़ी से भागा जा रहा था।
रात घिर आई थी। चाँदनी पहाड़ियों पर फैल चुकी थी। जब वह अपने छोटे से घर पहुँचा, तो थकान के बावजूद उसके चेहरे पर चमक थी। उसने दरवाज़ा बंद किया, दीपक जलाया और गठरियाँ खोलीं।
पहली गठरी में जो दिखा, उसे देखकर उसका चेहरा सफेद पड़ गया — अंदर जंग लगे लोहे के सिक्के थे। उसने जल्दी से दूसरी गठरी खोली — उसमें भी वही।
अब उसका दिल घबराने लगा। तीसरी गठरी उसने काँपते हाथों से खोली — और उसमें भी लोहे के जंग लगे सिक्के पड़े थे।
“यह क्या!” वह चिल्लाया। उसके होंठ सूख गए, और माथे पर पसीने की बूँदें चमक उठीं। तभी तीसरी गठरी के भीतर एक कागज़ का टुकड़ा गिरा। अर्जुन ने उसे उठाया। उसमें लिखा था—
“बेटा, यह कोई धन नहीं था। मैं राजा वसिष्ठ हूँ। मैंने ईमानदार व्यक्ति की खोज के लिए यह परीक्षा रखी थी। जो व्यक्ति बिना लालच के दूसरों की मदद करे, वही मेरे राज्य का उत्तराधिकारी बनने योग्य है।
लेकिन अफसोस, तुम भी मन की परीक्षा में असफल रहे।”
अर्जुन के हाथ काँपने लगे। कागज़ नीचे गिर गया। उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े। वह जमीन पर बैठ गया और फूट-फूट कर रोने लगा।
“काश, मैंने अपने मन की बात न सुनी होती… काश, मैंने वही गठरी वहीं छोड़ दी होती…” उसकी आवाज़ अंधेरे में खो गई।
रात लंबी थी। खिड़की से आती चाँदनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। वह सारी रात सो नहीं सका। मन में पछतावे का तूफ़ान था। उसने खुद से कहा, “पैसे के लालच में मैंने अपनी आत्मा खो दी। जिस फकीर को मैंने मदद का वादा किया था, उसी का भरोसा तोड़ा।”
सुबह हुई तो अर्जुन ने ठान लिया कि वह वापस जाएगा और बाबा से माफ़ी माँगेगा।
वह उसी रास्ते पर लौटा, जहाँ से भागा था। घंटों चलने के बाद उसे वही पेड़ दिखा, वही नदी, वही पत्थर, मगर बाबा कहीं नहीं थे। उसने जोर से पुकारा — “बाबा! बाबा दयानंद!” लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला।
निराश होकर वह पेड़ के नीचे बैठ गया। आँसू खुद-ब-खुद गिरने लगे। तभी हवा में एक हल्की-सी खुशबू फैली। उसने सिर उठाया तो देखा — वही बाबा उसके सामने खड़े थे।
चेहरे पर वही मुस्कान, वही शांत दृष्टि। अर्जुन ने उनके पैर पकड़ लिए, “बाबा, मुझे माफ़ कर दो। मुझसे गलती हो गई। मैंने आपको धोखा दिया।”
बाबा ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोले, “बेटा, तुम्हारी गलती वही नहीं थी जो तुमने गठरियाँ लेकर की। असली गलती वो थी जो पहले विचार के रूप में तुम्हारे मन में आई। जब पहला गलत विचार आया था, अगर उसी पल तुमने उसे रोक दिया होता, तो ये सब न होता।”
अर्जुन ने कहा, “बाबा, अब मैं क्या करूँ?”
बाबा बोले, “अब अपने जीवन को ईमानदारी की राह पर ले आओ। जब-जब मन में लालच उठे, तो यह याद रखना — सोना नहीं, मन की शुद्धता ही असली संपत्ति है।”
यह कहकर बाबा धीरे-धीरे आगे बढ़े। अर्जुन उनके पैरों में गिर पड़ा। आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में शांति।
जब उसने ऊपर देखा, बाबा वहाँ नहीं थे। हवा में केवल घंटियों की हल्की-सी आवाज़ गूंज रही थी।
अर्जुन वापस लौटा। अब उसने सेठ हरिराम की दुकान पर और भी मेहनत से काम करना शुरू किया। उसकी ईमानदारी की चर्चा पूरे गाँव में फैल गई। कुछ महीनों बाद राजा वसिष्ठ के दूत गाँव में आए और अर्जुन को राजमहल बुलाया।(Heart Touching Story)
राजा ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारी परीक्षा पूरी हुई। तुमने अपनी गलती स्वीकार की, यही सच्चे इंसान की पहचान है। अब तुम मेरे बाद इस राज्य के वारिस बनोगे।”
अर्जुन की आँखें छलक उठीं। उसने कहा, “महाराज, मैं तो बस एक साधारण इंसान हूँ।”
राजा ने कहा, “सच्चा इंसान वही है जो अपने दोषों को पहचान सके और उन्हें सुधार सके।”
वर्षों बीत गए। अर्जुन वही रहा — विनम्र, शांत और ईमानदार। उसने अपने राज्य को न्याय और करुणा से चलाया।
कभी-कभी वह पुराने बरगद के पेड़ के नीचे जाता, जहाँ से उसकी कहानी शुरू हुई थी। हवा में अब भी बाबा की खुशबू होती थी। वह मुस्कुराता और धीरे से कहता,
“धन्यवाद, बाबा… आपने मुझे सोना नहीं, आत्मा का मूल्य सिखाया।”
कहते हैं, जब कोई मनुष्य अपने लालच, क्रोध और भय पर विजय पा लेता है, तब वह सच में राजा बन जाता है — चाहे उसके सिर पर मुकुट हो या नहीं। अर्जुन भी वही राजा बना, जिसने अपने भीतर के मन को जीत लिया।(Heart Touching Story)
और यही कहानी आज भी रामनगर के लोग सुनाते हैं —
“फकीर की तीन गठरियाँ सिर्फ ताँबा, चाँदी, सोना नहीं थीं —
वे थीं इंसान की तीन परीक्षाएँ — ईमानदारी, संयम और आत्म-नियंत्रण।”
फकीर की तीन गठरियाँ – एक लालची युवक की ऐसी सीख जो ज़िंदगी बदल देगी”https://motivationalstoryinhindi.com/story-about-family-hindi/
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