भारत के नए मुख्य न्यायाधीश CJI Suryakant ने पद संभालते ही देशभर में चर्चा का विषय बन गए हैं। वे Supreme Court के 53वें CJI बने हैं और उन्होंने जस्टिस बी.आर. गवई की जगह ली है। लगभग 15 महीने के इस कार्यकाल में उनसे काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए वे पहले ही कई ऐतिहासिक और संवैधानिक मामलों में अपनी समझ और अनुभव दिखा चुके हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई और इस मौके पर कई देशों के मुख्य न्यायाधीश भी मौजूद रहे, जिससे इस पद की गरिमा और बढ़ गई। जस्टिस सूर्यकांत अपने शांत स्वभाव, गहरी संवैधानिक समझ और संतुलित विचारों के लिए हमेशा पहचाने जाते रहे हैं।
हरियाणा के हिसार जिले में 10 फरवरी 1962 को एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे सूर्यकांत मेहनती और अध्ययनशील माने जाते थे। उन्होंने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से लॉ में मास्टर डिग्री हासिल की और इसमें फर्स्ट क्लास फर्स्ट रहे। इसके बाद उन्होंने एक छोटे शहर के वकील से शुरुआत की और धीरे-धीरे देश की सर्वोच्च अदालत में जज बनने तक का सफर तय किया। सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज रहे और फिर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। इस दौरान उन्होंने कई ऐसे निर्णय दिए जो न्याय व्यवस्था की मजबूती और आम नागरिकों के अधिकारों से जुड़े थे। यही कारण है कि जब वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, तो उनकी छवि एक निष्पक्ष, दृढ़ और संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करने वाले जज की बन गई।
अब जब वे CJI Suryakant बन चुके हैं, उनके पहले के कई बड़े फैसलों पर फिर से चर्चा हो रही है। उनके फैसलों में हमेशा यह बात स्पष्ट रही है कि लोकतंत्र तभी मज़बूत बनता है जब न्यायपालिका स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी रहे। उनकी सोच हमेशा नागरिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संविधान की आत्मा को सुरक्षित रखने पर आधारित रही है। सुप्रीम कोर्ट में दिए गए उनके कई फैसले आने वाले वर्षों तक भारत के कानूनी ढांचे को प्रभावित करते रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा 11 दिसंबर 2023 को दिए गए अनुच्छेद 370 के फैसले में जस्टिस सूर्यकांत की अहम भूमिका रही। इस फैसले में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को वैध माना गया। यह निर्णय न सिर्फ राजनीतिक रूप से बल्कि संवैधानिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि यह भारत के संघीय ढांचे से जुड़े लंबे विवाद को खत्म करता है। फैसले के दौरान CJI Suryakant की टिप्पणियों और संवैधानिक तर्कों को व्यापक सराहना मिली। इस निर्णय को देश के एकीकरण और राष्ट्रीय नीति के महत्वपूर्ण मील-पत्थर के रूप में देखा गया।
IPC की धारा 124A यानी राजद्रोह कानून वर्षों से विवादों में रहा है। इस कानून के दुरुपयोग की कई शिकायतें भी सामने आती थीं। जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तब जस्टिस सूर्यकांत ने उस बेंच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने सरकार से कहा कि वह इस पुराने कानून की समीक्षा करे और जब तक समीक्षा पूरी न हो, तब तक इस धारा के तहत नई FIR दर्ज न की जाएं। यह एक साहसी और लोकतांत्रिक फैसला माना गया। कई विशेषज्ञों ने कहा कि यह कदम भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करने वाला है और इससे जनता का विश्वास न्यायपालिका में और बढ़ा। जस्टिस सूर्यकांत का रुख इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट था—कानून का उद्देश्य नागरिकों को दबाना नहीं, बल्कि सुरक्षा देना होना चाहिए।
पेगासस स्पाइवेयर विवाद ने पूरे देश को हिला दिया था। यह सवाल उठने लगे थे कि क्या नागरिकों की निजी जानकारी सुरक्षित है या नहीं। इस मामले की सुनवाई करते समय जस्टिस सूर्यकांत ने यह टिप्पणी की कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को असीमित अधिकार नहीं दिए जा सकते। लोकतंत्र में सत्ता पर सवाल उठाना ही संस्थाओं को मजबूत बनाता है। उनकी इस सोच के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र साइबर विशेषज्ञों की कमेटी गठित की, ताकि पेगासस मामले की सच्चाई सामने आ सके। यह फैसला नागरिकों की निजता और डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया और इससे आम लोगों में विश्वास पैदा हुआ कि न्यायपालिका उनके अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार है।
जब बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से लगभग 65 लाख नाम हटाए जाने की बात सामने आई, तो यह एक बड़ा चिंता का विषय बन गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में त्वरित सुनवाई की और जस्टिस सूर्यकांत ने यह निर्देश दिया कि चुनाव आयोग इस पूरे मामले की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करे। उन्होंने कहा कि मतदान का अधिकार लोकतंत्र की बुनियाद है और इसमें किसी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती। यह फैसला चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को मजबूत करने वाला साबित हुआ। जनता को लगा कि अगर उनके अधिकारों पर कोई गलत असर पड़ेगा तो सुप्रीम कोर्ट उनकी आवाज बनेगा।
20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए एक महत्वपूर्ण सवाल पर अपनी राय दी। यह मामला राज्यपालों द्वारा विधेयकों को लंबी अवधि तक लंबित रखने से जुड़ा था। इस पूरे प्रकरण में जस्टिस सूर्यकांत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि कोर्ट राष्ट्रपति या राज्यपाल को किसी विधेयक पर निर्णय लेने की समय सीमा तय नहीं कर सकता, लेकिन यदि वे लंबे समय तक निष्क्रिय रहते हैं, तो यह न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकता है। यह फैसला लोकतंत्र में जवाबदेही और संवैधानिक जिम्मेदारियों को स्पष्ट करने वाला महत्वपूर्ण कदम माना गया। इससे यह भी सुनिश्चित हुआ कि राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसे पद संवैधानिक संतुलन को बिगाड़ने के लिए इस्तेमाल नहीं किए जा सकते।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि CJI Suryakant एक ऐसे न्यायाधीश हैं जिन्होंने हमेशा संविधान, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। उनके फैसलों में न सिर्फ संवैधानिक गहराई दिखती है, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि वे न्यायपालिका को जनता का संरक्षक मानते हैं। अब जब वे भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश बन चुके हैं, पूरी उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट और अधिक मजबूत, पारदर्शी और जनता के करीब होगा। उनके अनुभव और साफ दृष्टिकोण से देश को न्याय के क्षेत्र में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
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