घने जंगल की सुबह हमेशा जादुई हुआ करती थी—ओस से भीगी हरी घास, हल्की-हल्की धूप की सुनहरी किरणें, और पेड़ों के बीच उड़ते छोटे-छोटे रंगीन पक्षियों की आवाज़ें। उसी जंगल में दो अनोखे दोस्त रहते थे—एक तेज़, शरारती लेकिन थोड़ा घमंडी खरगोश चंदन, और दूसरा धीमा, शांत, मेहनती और बेहद प्यारा कछुआ टिम्मी। पूरी जंगल की दुनिया उन्हें पहचानती थी, लेकिन दोनों की पहचान बिल्कुल अलग थी।
चंदन को अपनी तेज़ी पर इतना गर्व था कि वो हर किसी के सामने इसका ढोल पीटता रहता। जहां भी जाता, हवा से भी तेज़ भागता, फिर मज़ाक में कहता—“किसी का पीछा नहीं कर रहा, बस दुनिया को दिखा रहा हूँ कि यहाँ जंगल में सबसे तेज़ कौन है।” दूसरी ओर टिम्मी हमेशा अपनी ही चाल में, धीरे-धीरे, लेकिन बड़े सलीके से चलता। चाहे बारिश हो, धूप हो या शाम का अंधेरा—वह कभी जल्दबाज़ी नहीं करता था।
एक दिन सुबह-सुबह जंगल के बीच वाले मैदान में चंदन आया। घास पर चमक रही ओस उसके पैरों से टकराकर छोटी-छोटी बूँदों की तरह इधर-उधर उड़ रही थी। वह उछलता-कूदता हुआ आया और जोर-जोर से बोला—“अरे दोस्तों! आज मैंने मैदान के एक छोर से दूसरे छोर तक रिकॉर्ड समय में दौड़ लगाई! जंगल में मुझ जैसा तेज कोई है ही नहीं!”
उसकी आवाज़ सुनकर सभी जानवर वहां इकट्ठे हो गए। कुछ ने ताली बजाई, कुछ मुस्कुराए, और कुछ ने सोचा—“अब फिर शुरू हो गया।”
उसी समय धीमी चाल से टिम्मी भी आया। वह हमेशा की तरह शांत, धीरे और नम्र आवाज़ में बोला—“चंदन, तेज़ होना बहुत अच्छी बात है, लेकिन इतनी शेखी बघारना अच्छी बात नहीं होती।”
यह सुनते ही चंदन ठहाका मारकर हँस पड़ा—“अरे टिम्मी! तुम मुझे उपदेश दोगे? तुम तो एक जगह पहुँचने में ही आधा दिन ले लेते हो। अगर तुम मेरे साथ दौड़ लगाओगे, तो शायद तुम दोपहर में चलोगे और शाम को पहुंचोगे!”
सब हँस पड़े, लेकिन टिम्मी नहीं। वो बस मुस्कुराया और बोला—“चंदन, बात जीतने की नहीं, कोशिश करने की है। अगर तुम्हें इतना ही भरोसा है अपनी तेज़ी पर, तो क्यों न हम दोनों एक रेस कर लें?”
पूरा जंगल खामोश हो गया।
चंदन की हँसी अचानक रुक गई।
वह बोला—“क्या तुम पक्का कह रहे हो कि तुम मेरे साथ रेस लगाना चाहते हो?”
टिम्मी ने सिर हिलाया—“हाँ।”
चंदन फिर से हँसा—“ठीक है! चलो, कर लेते हैं रेस! अगर तुम जीत गए तो मैं आज के बाद कभी किसी का मज़ाक नहीं उड़ाऊँगा। लेकिन अगर मैं जीत गया तो तुम मानोगे कि तेज़ी ही सबसे बड़ी ताकत है।”
टिम्मी ने कहा—“मैं मान लूँगा कि तुम तेज़ हो। लेकिन आज मैं यह साबित करूँगा कि जीत सिर्फ तेज़ी से नहीं मिलती, मेहनत और धैर्य से भी मिलती है।”
और फिर रेस की तैयारी होने लगी।
जंगल के सारे जानवरों ने एक लंबा रास्ता चुना—मैदान से शुरू होकर पगडंडी से गुजरते हुए नदी के किनारे तक और फिर वापस मैदान की फिनिश लाइन तक।
रेस के दिन पूरा जंगल उत्साह से भरा हुआ था। चिड़ियाँ पेड़ों की शाखों पर बैठी थीं, बंदर उछल-कूद कर रहे थे, हिरण और बारहसिंहा कतार में खड़े होकर देखने की जगह पकड़ रहे थे, और हाथी जी अपनी सूँड से जमीन साफ कर रहे थे ताकि कोई जानवर गिर न जाए।
रेस शुरू हुई।
जैसे ही शेर बाबा ने दहाड़कर संकेत दिया—“शुरू!”
चंदन तीर की तरह दौड़ पड़ा।
उसके पैरों से निकलती धूल हवा में उड़ने लगी।
पाँच सेकंड भी नहीं हुए थे कि वह इतना आगे निकल गया कि बाकी जानवरों को सिर्फ उसकी पीठ ही दिख रही थी।
दूसरी ओर, टिम्मी धीरे-धीरे चलता रहा।
उसके आसपास खड़े छोटे जानवर उसे प्रोत्साहित कर रहे थे—
“चलो टिम्मी! तुम कर सकते हो!”
“धीरे चलो लेकिन रुको मत!”
टिम्मी ने सिर उठाकर मुस्कुराया और बोला—“मैं कोशिश कर रहा हूँ। मंज़िल दूर है, लेकिन मेरे कदम रुकेंगे नहीं।”
और वो अपनी चाल में आगे बढ़ता रहा।
उधर चंदन ने पगडंडी पार की और नदी के पास आकर बोला—“हाहाहा! यह रेस तो मेरे लिए बिलकुल आसान है। टिम्मी को आने में तो अभी बहुत वक्त लगेगा। क्यों न थोड़ी देर आराम कर लिया जाए?”
वह एक पेड़ के नीचे गया, घास पर लेटा और बोला—“बस दो मिनट की झपकी लेता हूँ… इतना तो टिम्मी एक कदम भी नहीं चलता…”
और चंदन गहरी नींद में सो गया।
उधर टिम्मी धीरे-धीरे नदी के किनारे पहुंचा।
सारे जानवरों ने सोचा था कि शायद वह रुक जाएगा, शायद थक जाएगा, शायद बैठ जाएगा… लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
वह मुस्कुराया और बोला—“रुकना मुझे आता ही नहीं। नदी के किनारे तक आया हूँ, तो आगे भी जाऊँगा।”
टिम्मी नदी के किनारे से गुजरा और आगे बढ़ने लगा।
धीरे-धीरे, बिना रुके, बिना थके।
काफ़ी देर बाद चंदन अचानक चौंककर उठा—“अरे! मैं तो सो गया था… टिम्मी कहां है?”
वह दौड़ा, और दौड़ते-दौड़ते उसकी सांस फूल गई।
लेकिन जैसे ही वह फिनिश लाइन के पास पहुँचा, उसने देखा कि टिम्मी ने मुस्कुराते हुए लाइन पार कर दी है।
पूरा जंगल तालियों से गूंज उठा—
“टिम्मी जीत गया!”
“टिम्मी ने कर दिखाया!”
चंदन ने शर्म से सिर झुका लिया।
वह टिम्मी के पास आया और बोला—“टिम्मी… मैं सच में गलत था। मैंने तुम्हें कमज़ोर समझा। लेकिन तुमने दिखा दिया कि जीतने के लिए सिर्फ तेज़ी नहीं चाहिए—मजबूत इरादा चाहिए।”
टिम्मी ने कहा—“चंदन, कोई भी रेस सिर्फ पैरों से नहीं जीती जाती, दिल से जीती जाती है।”
उस दिन के बाद चंदन बदल गया।
वह किसी का मज़ाक नहीं उड़ाता था।
उसने बच्चों को दौड़ना सिखाना शुरू किया, उन्हें बताया कि तेज़ी का मतलब घमंड नहीं, बल्कि सही समय का इस्तेमाल है।
टिम्मी भी जंगल में सबका आदर्श बन गया।
उसे देखकर बच्चे सीखते—“धीरे चलो, लेकिन रुकना मत।”
दोनों ने मिलकर जंगल में एक बड़ा “जंगल ट्रेनिंग स्कूल” खोला, जहाँ चंदन स्पीड और बैलेंस सिखाता और टिम्मी धैर्य, आत्मविश्वास और हिम्मत।
इस स्कूल की रेस सबसे मज़ेदार होती थी।
यहाँ जीत भी खुशी देती थी और हार भी हिम्मत बढ़ाती थी।
एक दिन जंगल में टीम रेस रखी गई और सबकी सबसे पसंदीदा टीम थी—
“खरगोश और कछुआ टीम।”
इस बार दोनों साथ दौड़े—
पहले हिस्से में चंदन तेज़ चला, दूसरे हिस्से में टिम्मी ने नदी पार की, और तीसरे हिस्से में दोनों ने साथ-साथ पहाड़ी चढ़ी।
जब उन्होंने फिनिश लाइन एक साथ पार की, तो जंगल में सबसे ज़ोरदार तालियाँ बजीं।
सभी ने कहा—“जीत वही है जिसमें दोस्ती हो, टीमवर्क हो, और एक-दूसरे का साथ हो।”
धीरे-धीरे उनकी कहानी जंगल से बाहर निकलकर दूसरे जंगलों में फैलने लगी।
बच्चे रात को सोने से पहले सुनते—
Rabbit and Tortoise Story in Hindi सिर्फ रेस की कहानी नहीं, जीवन की कहानी है।
और आज भी यह कहानी पीढ़ियों को सिखाती है—
घमंड नहीं, धैर्य महान है।
तेज़ी नहीं, निरंतरता ताकत है।
दोस्ती और टीमवर्क हर मुश्किल रेस को आसान बना देते हैं।
और जीतने वाला वही है जो कभी रुकता नहीं है।
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