मध्य पूर्व संकट के चलते कच्चे तेल की कीमतों (Oil Prices) में उछाल आया है, जिससे एशियाई शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। जानिए इस संकट का भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ रहा है।
दुनिया की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से इतनी गहराई से जुड़ी हुई है कि एक क्षेत्र में हुआ उथल-पुथल, दूर-दराज़ के देशों की अर्थव्यवस्था को भी हिला सकता है। हाल ही में मध्य पूर्व (Middle East) में पैदा हुए संकट ने एक बार फिर ये बात साबित कर दी है। जैसे ही वहां तनाव बढ़ा, कच्चे तेल की कीमतों (Oil Prices) में तेजी आई, जिससे एशियाई शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली।
तेल एक ऐसा संसाधन है जिसकी मांग हर देश में है, और जब आपूर्ति को लेकर आशंका हो तो कीमतें बढ़ना तय होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे मध्य पूर्व में उपजा यह संकट पूरी दुनिया के आर्थिक समीकरणों को प्रभावित कर रहा है।
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मध्य पूर्व लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता और संघर्षों का केंद्र रहा है। इज़राइल और हमास के बीच हालिया झड़पें, ईरान और अमेरिका के संबंधों में तल्ख़ी, और यमन के हूती विद्रोहियों की गतिविधियां क्षेत्र में तनाव बढ़ा रही हैं। यह इलाका तेल उत्पादन का सबसे अहम केंद्र है — सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत जैसे देश यहीं हैं।
संकट की स्थिति में तेल टैंकरों की आवाजाही बाधित हो सकती है। जैसे ही वैश्विक बाजार को यह डर सताता है कि तेल की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है, निवेशकों का भरोसा डगमगाने लगता है और तेल की कीमतें चढ़ने लगती हैं।
तेल के दाम केवल ईंधन को महंगा नहीं करते, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। एशियाई बाजार — जैसे भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया — इस संकट के कारण गहरे दबाव में हैं।
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भारत अपनी तेल ज़रूरतों का करीब 85% आयात करता है। ऐसे में तेल की वैश्विक कीमतों में हर उतार-चढ़ाव का सीधा असर भारत पर पड़ता है।
इस तरह के संकट में घबराने की बजाय दीर्घकालिक सोच से काम लेना ज़रूरी होता है:
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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ऐसे समय में मौद्रिक नीति के ज़रिए महंगाई को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। यदि तेल की कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहती हैं, तो रेपो रेट बढ़ाई जा सकती है।
सरकार टैक्स कम करके जनता को राहत देने की कोशिश कर सकती है, जैसा 2022 में पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाकर किया गया था।
“मध्य पूर्व संकट से Oil Prices आसमान पर, एशियाई शेयर बाजारों में भारी गिरावट” केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह वैश्विक भू-राजनीति, ऊर्जा नीति और वित्तीय बाज़ार की गहराई को दर्शाता है। निवेशकों, सरकार और आम नागरिकों को मिलकर इस चुनौती से निपटने की रणनीति बनानी होगी।
इस संकट ने यह साबित कर दिया है कि एक क्षेत्रीय विवाद पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता को हिला सकता है। यही समय है समझदारी और दूरदर्शिता से निर्णय लेने का।https://www.amarujala.com/business/business-diary/report-west-asia-crisis-increases-crude-oil-prices
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