ये बात आज से ठीक पाँच साल पहले की है। उत्तर भारत के पहाड़ों के पास बसा था एक रहस्यमय गाँव — माटीपुर। ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से घिरा ये गाँव जितना सुंदर था, उतना ही डरा देने वाला भी। गाँव के लोग बाहर वालों से ज्यादा बातें नहीं करते थे, और सूरज ढलते ही सब अपने घरों में बंद हो जाते थे — मानो किसी अदृश्य डर से बंधे हों।(dark haunted portal)(Hindi Horror Story)
इस डर की सबसे बड़ी वजह था गाँव के बाहर खड़ा एक बहुत पुराना और विशाल पीपल का पेड़ (haunted tree)। उसकी टेढ़ी-मेढ़ी जड़ें ज़मीन से बाहर निकल आई थीं, जैसे किसी मृत आत्मा की उँगलियाँ किसी को पकड़ने को तड़प रही हों। उस पेड़ के बारे में कहा जाता था कि उसकी छांव में प्रेतात्माओं (evil spirits) का वास है, और उसके नीचे एक ऐसा रहस्यमय रास्ता है जो सीधे एक भयावह दुनिया (spirit world) में खुलता है — जिसे लोग “अंधेरे का दरवाज़ा” (dark haunted portal) कहते थे।
गाँव का एक होशियार और निडर लड़का था — आरव। उसे इन लोककथाओं और डरावनी कहानियों पर ज़रा भी भरोसा नहीं था। जहाँ बाकी लोग उस पेड़ के पास से भी गुज़रने से डरते थे, आरव अक्सर वहाँ जाकर बैठता, किताबें पढ़ता और कभी-कभी अपनी डायरी में कुछ लिखता।
उसे समझ नहीं आता था कि एक पेड़ से इतना डर क्यों? क्या डर सिर्फ कल्पना है, या उसमें कोई सच्चाई भी है? यही सोचते-सोचते एक दिन उसने ठान लिया — वो उस अंधेरे के दरवाज़े (cursed passage) की सच्चाई जानकर रहेगा।
मनोज, आरव का सबसे करीबी दोस्त था, जिसने बहुत मना किया। उसने कहा, “लोग कहते हैं जो उस दरवाज़े में गया, वो फिर कभी वापस नहीं आया। क्या तुझे अपनी ज़िंदगी प्यारी नहीं?”
आरव हँसते हुए बोला, “डर सिर्फ वोम होता है जो हम खुद अपने अंदर पैदा करते हैं। मैं कोई गलत काम नहीं कर रहा, बस सच्चाई जानना चाहता हूँ।”(dark haunted portal)(Hindi Horror Story)
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अगली रात, अमावस्या थी। काली रात, ठंडी हवा और एकदम सन्नाटा। आरव ने हाथ में टॉर्च और जेब में अपनी डायरी रखी और अकेले उस पेड़ की तरफ चल पड़ा।
जैसे ही वह पेड़ के पास पहुँचा, एक हल्की-सी सरसराहट सुनाई दी। अचानक ज़मीन के नीचे कुछ हिला और वहाँ एक छोटा-सा दरवाज़ा उभर आया, पत्थर से बना हुआ, बेहद पुराना। उस पर लहू जैसे रंग में लिखा था — “यहाँ प्रवेश मत करो। यह मार्ग जीवन का नहीं है।”
आरव कुछ देर ठिठका, फिर अपनी साँस रोककर दरवाज़ा खोला और अंदर उतर गया।
अंदर अंधकार इतना गहरा था कि टॉर्च की रौशनी भी बेअसर लग रही थी। दीवारें ठंडी और सीलन भरी थीं। कुछ कदम आगे चलने पर उसे एक बड़ा कमरा दिखाई दिया। उस कमरे के बीचोंबीच एक टूटे हुए आइने जैसा ढांचा रखा था, जिसमें धुँधली आकृतियाँ हिलती-डुलती नज़र आ रही थीं।
तभी कमरे की हवा भारी हो गई। आरव की साँसें तेज चलने लगीं। और अचानक उसके सामने एक परछाईं उभरी — बिना चेहरा, बिना शरीर, बस एक घना धुआँ और जलती हुई आँखें।
वो परछाईं बोली, “तू यहाँ क्यों आया, इंसान?”
आरव काँपते हुए बोला, “मैं जानना चाहता था कि अंधेरे का दरवाज़ा (dark haunted portal) क्या है।”
उस काली शक्ति ने हँसते हुए कहा, “यह सिर्फ दरवाज़ा नहीं, यह एक शापित संसार का प्रवेश द्वार है। यहाँ जो आता है, उसका शरीर तो बाहर रह जाता है, लेकिन आत्मा (lost soul) यहीं कैद हो जाती है… हमेशा के लिए।”
आरव ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैरों में जैसे ज़मीन ने जकड़ लिया हो। उसकी आँखों के सामने सबकुछ घूमने लगा, और वह बेहोश होकर गिर पड़ा।
जब उसकी आँखें खुलीं, तो वह अब इंसान नहीं रह गया था। वह अब एक भटकी आत्मा (possessed soul) बन चुका था — उसका चेहरा फीका, आँखें गहरी, और आवाज़ गूंजती हुई। उसका नाम मिट गया, और वह भी उन आकृतियों में शामिल हो गया जो सदियों से उस अंधेरे में भटक रही थीं।(dark haunted portal)(Hindi Horror Story)
गाँव में हड़कंप मच गया। सबने समझ लिया कि आरव भी अब उस दरवाज़े का हिस्सा बन चुका है। पेड़ के पास कुछ रातों तक आरव की चीखें सुनाई देती रहीं, फिर एक दिन सब शांत हो गया।
समय बीता। लोग डर के कारण उस इलाके से दूर रहने लगे। पर एक इंसान था जो अब भी चैन से नहीं सो पाता था — मनोज।
पाँच साल बाद, एक रात वो उस पेड़ के सामने खड़ा था। वही पुराना पेड़, वही डरावनी हवा, लेकिन अब दरवाज़ा कहीं नज़र नहीं आ रहा था। मनोज ने आँखें बंद कीं और चुपचाप बोला, “आरव… अगर तू कहीं है, तो एक बार सामने आ जा।”
अचानक ज़मीन में दरार पड़ी और वही अंधेरे का दरवाज़ा फिर से उभरा। इस बार दरवाज़े पर कोई चेतावनी नहीं थी — बस स्याही में लिखा था, “अब तेरा भी स्वागत है।”
मनोज नीचे उतरा। वहाँ सबकुछ पहले जैसा था — ठंडा, डरावना और खाली। लेकिन जब वह उस कमरे में पहुँचा, तो उसने देखा कि वहाँ एक चेहरा रो रहा था। वो आरव था — पर अब वो भूत नहीं, जैसे इंसान बन गया हो।
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“मनोज… तू आया? मुझे अब भी उम्मीद थी…”
“चल, वापस चलें। मैं तुझे यहाँ से निकालने आया हूँ,” मनोज बोला।
“बहुत देर हो चुकी है। तू चला जा, वरना तू भी नहीं बचेगा।”
लेकिन मनोज ने उसका हाथ थाम लिया और जोर से कहा, “हम दोनों लौटेंगे। आज नहीं तो कभी नहीं।”
तभी चारों ओर गूंज उठीं सैकड़ों आवाज़ें। दीवारें काँपने लगीं, और वह आइना चटक गया। एक तेज़ रोशनी हुई और फिर सब कुछ शांत।
अगली सुबह, गाँव वाले जब वहाँ पहुँचे तो उन्होंने पेड़ को गिरा हुआ पाया। उसकी जड़ें राख में बदल चुकी थीं। और पेड़ की जगह एक छोटा-सा गुलाब का पौधा उग आया था।(dark haunted portal)(Hindi Horror Story)
लोग कहते हैं, मनोज ने अपने दोस्त को मुक्ति दी। और शायद अपने आप को भी। लेकिन अमावस्या की रात, जब हवा तेज चलती है — उस गुलाब के पौधे के पास से आज भी किसी के फुसफुसाने की आवाज़ आती है…
“अभी दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं हुआ है…”https://hindikahani.in/the-enchanting-princess-of-the-grand-palace/
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