देव की कहानी किसी फिल्म की कहानी जैसी लगती है, लेकिन यह हकीकत जितनी सच्ची है।
छोटे से कस्बे चंदनपुर में रहने वाला 17 साल का देव अलग ही मिट्टी का बना था।
गरीबी उसके घर की दीवारों पर जैसे स्थायी रंग की तरह चिपकी हुई थी, लेकिन उस रंग के पीछे एक चमक थी—एक सपना, जो देव की आंखों में हर पल जगता था।
देव के पिता कई साल पहले हादसे में गुजर गए थे। मां कमला छोटे-छोटे घरों में काम करके दो बच्चों को पालती थी।
देव बड़ा था, और उसी पर घर की जिम्मेदारी थी।
पर जिम्मेदारियों से भी बड़ी थी उसकी उड़ान की चाहत—कुछ ऐसा करना जो उसके परिवार की किस्मत बदल दे (motivational story in hindi for students)।
देव का सपना था—जिला का सबसे बड़ा विज्ञान पुरस्कार जीतना और आगे चलकर देश का नाम रोशन करना।
उसका मानना था—
“अगर जिंदगी मेरे खिलाफ है, तो मैं अपनी मेहनत से उसका रुख बदल दूंगा।”
हर सुबह देव चार बजे उठता, काम करता, मां की मदद करता और फिर पढ़ाई में बैठ जाता।
उसकी किताबें पुरानी थीं, लेकिन सपने नए थे।
उसके पास नोट्स नहीं थे, लेकिन दिमाग में दृढ़ निश्चय था।
और सबसे बड़ी बात—उसके पास मन की ताकत थी, जो उसे बार-बार कहती थी—
“देव, तू हारने के लिए पैदा नहीं हुआ।”
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स्कूल के बच्चे कभी-कभी उसे चिढ़ाते—
“अरे देव! तू साइंटिस्ट बनेगा? तेरे घर में बिजली का बल्ब तक तो ठीक से नहीं जलता!”
देव हंसता और कहता,
“एक दिन मेरा सपना ही रोशनी करेगा… देख लेना।”
उसका यह आत्मविश्वास कई बार लोगों को खटकता,
पर देव के लिए यह आत्मविश्वास ही उसकी असली पूंजी था।
एक शाम जब मां काम से लौटी, उनके हाथ कांप रहे थे।
देव ने पूछते ही समझ लिया—मां की तबीयत ठीक नहीं है।
डॉक्टर ने कहा,
“कमला बहन, आपको आराम की जरूरत है, वरना हालत बिगड़ जाएगी।”
मां ने दुखी होकर देव की तरफ देखा—
“बेटा… घर कैसे चलेगा?”
देव ने कसकर मां का हाथ पकड़ा और बोला—
“मैं हूँ न मां। मैं सब कर लूंगा।”
उस रात देव छत पर बैठा आसमान की तरफ देख रहा था।
हवा ठंडी थी और आंखें नम।
उसके मन में एक ही सवाल था—
क्या मैं सच में यह सब कर पाऊँगा?
पर अगले ही पल उसने खुद को संभाला और कहा—
“अगर मैं नहीं, तो कौन?”
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अगले दिन से देव ने शाम को दुकान पर काम करना शुरू कर दिया।
दिन में पढ़ाई, शाम को मजदूरी और रात को सपनों की तैयारी।
कई बार उसके हाथ छिल जाते, कई बार वह थक कर बैठ जाता,
लेकिन एक आवाज़ उसके मन में बार-बार उठती—
“देव, यह संघर्ष ही तेरी दौलत है।”
कुछ दिनों बाद एक घोषणा हुई—
“राष्ट्रीय विज्ञान छात्रवृत्ति परीक्षा” होने वाली थी।
विजेता को मिलती थी 100% फ्री शिक्षा, स्कॉलरशिप और देश की शीर्ष यूनिवर्सिटी में प्रवेश।
देव का दिल जोरों से धड़कने लगा।
उसने फॉर्म उठाया…
लेकिन फीस थी 1500 रुपये।
घर में कुल पैसे थे—80 रुपये।
देव कमरे में बैठा रहा, चुप।
मां धीरे से उसके पास आई और बोली—
“अगर तेरे पापा होते न… तो कहते, बेटा! आगे बढ़… दुनिया जीत ले।”
देव की आंखें भर आईं।
वह बोला—
“मां, मैं कोशिश करूंगा।”
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देव ने अगले 12 दिनों तक गांव में हर संभव काम किया—
किसी के खेत में मजदूरी, किसी के यहां ईंट उठाना, किसी के यहां सब्जी का ठेला धकेलना।
गांव वाले कहते—
“ये लड़का एक आग है। इसके अंदर कुछ अलग है।”
देव उस आग को बुझने नहीं देता था।
आखिरकार 1500 रुपये इकट्ठे हो गए।
उसने परीक्षा का फॉर्म भर दिया।
परीक्षा का दिन आया।
देव सुबह से पैदल चलकर शहर जा रहा था।
रास्ते में अचानक बारिश शुरू हो गई।
किताबें भीग गईं, पैर फिसल गया, घुटना छिल गया।
पर देव बिना रुके आगे बढ़ता रहा।
परीक्षा केंद्र पहुंचा तो घंटी बज चुकी थी।
गेट पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने कहा—
“लेटलतीफ़ अंदर नहीं जा सकते!”
देव का दिल टूट गया।
पर उसने हाथ जोड़कर कहा—
“सर… मैं बहुत दूर से आया हूँ… यह मेरा आखिरी मौका है।”
एक पल को गार्ड चुप रहा।
फिर उसने देव का चेहरा देखा—उसके भीगे कपड़े, खून लगा घुटना, थका हुआ लेकिन विश्वास से भरा चेहरा।
गार्ड बोला—
“जा बेटा, भागकर जा। भगवान तुझे सफल करे।”
देव दौड़ते हुए अंदर गया।
उस दिन उसने अपने जीवन का सबसे अच्छा पेपर दिया।
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परीक्षा के बाद भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ।
देव लाइब्रेरी में रोज़ 10–12 घंटे पढ़ता,
रात में अंधेरे में मिट्टी के चूल्हे की रोशनी में पढ़ता,
कभी माचिस की लौ से नोट्स बनाता,
कभी गांव की टंकी पर बैठकर तारों से भरे आसमान को देखता और कहता—
“एक दिन मेरी मंज़िल चमकेगी… बिल्कुल इन तारों की तरह।”
लेकिन असली पल तब आया जब रिज़ल्ट घोषित हुआ।
देव गांव के चौक में खड़ा था।
सबके मोबाइल में रिज़ल्ट खुल रहा था।
हर कोई अपने नंबर चेक कर रहा था।
अचानक गांव का एक लड़का चिल्लाया—
“अरे! चंदनपुर का देव…
देव ने एयर 9 हासिल की है… All India Rank 9!”
पूरा चौक गूंज उठा।
तालियां, खुशी की आवाज़ें, सीटी…
लोग देव के कंधों पर उठा रहे थे।
मां देव को गले लगाकर रोने लगी—
“आज तेरे पापा भी ऊपर से खुश होंगे, बेटा।”
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अब देव को देश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में फ्री एडमिशन मिल गया।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती…
क्योंकि हर बड़े सपने के पीछे एक और बड़ा संघर्ष छिपा होता है।
यूनिवर्सिटी में देव को नए चैलेंज मिलने लगे।
सबके पास लैपटॉप थे, महंगे बैग थे,
देव के पास सिर्फ एक पुराना बैग और एक डायरी।
कई स्टूडेंट्स उसे देखकर मुस्कुराते—
“यह गांव वाला यहां कैसे आ गया?”
देव ने उन मुस्कुराहटों को पत्थर की तरह सहा,
लेकिन उसका मन एक ही बात कहता रहा—
“यही लोग एक दिन मेरी बात सुनने आएंगे।”
धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी।
क्लास में पहले सवाल वही हल करता,
लैब में सबसे अच्छा प्रयोग वही करता,
लाइब्रेरी में सबसे देर तक वही रुकता।
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तीसरे साल में एक विशाल राष्ट्रीय इनोवेशन प्रतियोगिता रखी गई,
जिसका विजेता 40 लाख रुपये की स्कॉलरशिप और विदेश में रिसर्च का मौका पाता।
सैकड़ों छात्रों ने नाम दिया… उनमें से एक था—देव।
उसने अपने पुराने जले हुए चूल्हे, गांव की बिजली की समस्या, और गरीब परिवारों की रातें देखकर
एक ऐसा मॉडल बनाया जो कम बिजली में तीन गुना रोशनी दे सके।
वह 72 घंटे लगातार बिना सोए काम करता रहा।
हाथ कांपने लगे, आंखें लाल हो गईं, सीने में दर्द होने लगा,
लेकिन देव ने कहा—
“ये आखिरी लड़ाई है… रुकना मना है।”
अंतिम दिन जब देव ने मंच पर अपना मॉडल प्रस्तुत किया,
पूरा हॉल कुछ सेकंड तक शांत रहा।
फिर तालियों की आवाज़ से हॉल गूंज उठा।
जज खड़े होकर बोले—
“यह लड़का भविष्य है।”
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लेकिन असली मोड़ अभी बाकी था।
रिज़ल्ट वाला दिन आया।
पहला नाम—किसी और का।
दूसरा—किसी और का।
तीसरा—किसी और का।
देव की आंखें भरने लगीं।
लग रहा था कि शायद वह हार गया।
वह धीरे-धीरे उठकर बाहर जाने ही वाला था कि मंच से एक आवाज़ आई—
“और इस साल का स्पेशल इनोवेशन गोल्ड अवॉर्ड,
जिसे हम आमतौर पर किसी को नहीं देते…
जाता है—
देव राजभर को!”
हॉल तालियों से भर गया।
देव मंच पर गया,
ट्रॉफी पकड़ते ही उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
जज ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा—
“तुम्हारे काम ने हमें गर्व महसूस कराया है।
आज से तुम्हें विदेशी यूनिवर्सिटी की फुल स्कॉलरशिप दी जाती है।”
पूरा हॉल देव के नाम से गूंज उठा।
देव ने मंच से नीचे देखा—
उसे याद आया वह टूटा हुआ जूता,
वह भीगी किताबें,
वह रातें जब उसके पास रोशनी तक नहीं थी।
उसने माइक उठाया और कहा—
“मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ—
मन की ताकत से बड़ा कोई हथियार नहीं।
अगर दिल साफ हो, इरादा मजबूत हो,
तो गरीबी, मुश्किलें, ताने, थकान…
कुछ भी आपका रास्ता रोक नहीं सकता।”
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कहानी की सीख:
जो अपनी मन की ताकत पर भरोसा रखते हैं,
उनके लिए कोई सपना असंभव नहीं होता।
(motivational story in hindi for students)https://www.kahanizone.com/moral-stories/hindi-story-with-moral-in-hindi/
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