दुनिया भर में ऊर्जा बाज़ार लगातार बदल रहा है, लेकिन इस बार जो अनुमान सामने आया है उसने भारत सहित कई देशों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। हाल ही में अमेरिका की प्रसिद्ध वित्तीय संस्था जेपी मॉर्गन ने एक बड़ा दावा किया है कि आने वाले वर्षों में कच्चे तेल की कीमतों में ऐसी गिरावट आ सकती है जिससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें आधी तक हो सकती हैं। भारत जैसे देश, जो अपनी 85% से ज्यादा तेल जरूरतें आयात से पूरी करते हैं, इस भविष्यवाणी से बड़ी राहत महसूस कर सकते हैं। अगर कच्चा तेल सस्ता होता है तो इसका सीधा असर आम जनता, अर्थव्यवस्था और सरकार के खर्चों पर पड़ेगा।
जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट का कहना है कि आने वाले तीन वर्षों में तेल की खपत जरूर बढ़ेगी, लेकिन तेल का उत्पादन उससे कहीं ज्यादा रफ्तार से बढ़ेगा। जब सप्लाई डिमांड से ज्यादा होती है, तो कीमतें अपने आप नीचे आने लगती हैं। इसी आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि 2027 तक ब्रेंट क्रूड की कीमत 30 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है, जबकि इस समय इसकी कीमत लगभग 60 डॉलर के आसपास है। इसका अर्थ यह है कि कच्चा तेल लगभग आधी कीमत पर उपलब्ध होगा, और स्वाभाविक है कि भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी काफी कम हो जाएंगी।
भारत के लिए यह अनुमान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारा देश ऊर्जा के मामले में अत्यधिक निर्भर है। हर साल तेल आयात में भारी रकम खर्च होती है। जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल महंगा होता है, तो पेट्रोल-डीजल के दाम भी बढ़ जाते हैं, जिससे आम आदमी की जेब पर भार बढ़ जाता है। लेकिन यदि कच्चे तेल की कीमतें आधी होती हैं, तो सरकार का आयात खर्च कम होगा, तेल कंपनियों को लाभ मिलेगा और उम्मीद है कि यह फायदा उपभोक्ताओं तक भी पहुंचेगा।
जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट में बताया गया है कि अब सिर्फ ओपेक+ देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई अन्य देश भी अपने तेल उत्पादन को तेजी से बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी शेल ऑयल, ब्राज़ील, गयाना और अन्य देशों में तेजी से प्रोडक्शन बढ़ रहा है। नई तकनीकों की वजह से गहरे समुद्र से तेल निकालना अब अधिक सस्ता और सरल हो गया है, जो पहले मुश्किल और महंगा माना जाता था। यही बढ़ता उत्पादन आने वाले वर्षों में सप्लाई का स्तर इतना बढ़ा देगा कि मांग उसके सामने कम दिखाई देगी।
जेपी मॉर्गन के अनुसार वर्ष 2025 तक दुनियाभर में तेल की मांग 0.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन बढ़कर 105.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुंच सकती है। लेकिन इसके बावजूद सप्लाई इससे कहीं ज्यादा होने की संभावना है। नई तेल खोजों और बड़े पैमाने पर डीप सी ड्रिलिंग प्रोजेक्ट्स की वजह से 2029 तक तेल उत्पादन के लिए नए जहाज और तकनीकें पहले ही तय हो चुकी हैं। इसका मतलब यह है कि आने वाले समय में उत्पादन का दबाव कीमतों को और नीचे धकेल सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार 2027 तक कच्चे तेल की औसत कीमत 42 डॉलर प्रति बैरल तक रह सकती है और साल के अंत तक यह 30 डॉलर तक भी गिर सकती है। इस अनुमान से यह साफ है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कीमतें इतनी नीचे आती हैं, तो भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें मौजूदा स्तर से काफी कम हो सकती हैं। कच्चा तेल जितना सस्ता होगा, उतना ईंधन का खुदरा मूल्य भी नीचे आएगा, भले ही टैक्स और अन्य कारण भी कीमतों को प्रभावित करते हों।
यदि पेट्रोल-डीजल की कीमतें आधी हो जाती हैं, तो पूरे देश में इसका असर देखने को मिल सकता है। परिवहन लागत कम होगी, जिससे सामान की कीमतें घटेंगी। किसानों के लिए डीजल का खर्च कम होगा, जिससे खेती की लागत घटेगी। सरकार को भी आयात के लिए कम रकम चुकानी होगी और तेल कंपनियों को भी ज्यादा मुनाफा मिलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बढ़ा हुआ मुनाफा कंपनियां उपभोक्ताओं तक पहुंचा सकती हैं, जिससे लोगों को बड़ी राहत मिलेगी।
इस अनुमान के पीछे एक बहुत बड़ी वजह यह भी है कि दुनिया भर में शेल ऑयल और डीप सी ऑयल उत्पादन पहले की तुलना में रिकॉर्ड गति से बढ़ रहा है। पहले गहरे समुद्र से तेल निकालना बेहद महंगा और जोखिम भरा माना जाता था, लेकिन अब उन्नत तकनीकों ने इसे सस्ता और भरोसेमंद बना दिया है। यही कारण है कि कई देशों ने बड़े निवेश के साथ नए प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। इससे वैश्विक सप्लाई में लगातार वृद्धि हो रही है।
नई ड्रिलिंग तकनीकों ने उत्पादन की क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव लाया है। कई देशों में तेल खोज के नए स्रोत मिले हैं, जिससे आने वाले वर्षों में सप्लाई बढ़ती ही रहेगी। यह बढ़ी हुई सप्लाई वैश्विक कीमतों पर सीधा दबाव बनाए रखेगी और यही कारण है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी लंबे समय तक कम स्तर पर रह सकती हैं।
अगर जेपी मॉर्गन का यह अनुमान वास्तविकता में बदलता है, तो भारत के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होगा। पिछले कुछ वर्षों में तेल कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से महंगाई बढ़ी है और आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ा है। ऐसे में अगर कच्चा तेल सस्ता होता है और पेट्रोल-डीजल की कीमतें आधी रह जाती हैं, तो लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों में बड़ी राहत मिलेगी।
देश की अर्थव्यवस्था में भी सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेंगे। महंगाई नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक क्षेत्र में सुधार होगा, और कई उद्योगों में उत्पादन लागत घटेगी। कुल मिलाकर यह बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सार रूप में, आने वाले कुछ साल ऊर्जा उद्योग के लिए बेहद खास हो सकते हैं। बढ़ती सप्लाई, नई तकनीकों और बढ़ते उत्पादन के कारण तेल बाज़ार में बड़ा बदलाव संभव है। अगर अनुमान सही साबित होते हैं, तो भारत समेत कई देशों में पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटेंगी और आम जनता को बड़ी राहत मिलेगी। अब सभी की नजर इस बात पर होगी कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार किस दिशा में आगे बढ़ता है और यह अनुमान कितना सच साबित होता है।https://nadabindukalainstitute.com/petrol-diesel-price/
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